दर्द में कुछ कमी-सी लगती है
जिन्दगी अजनबी-सी लगती है
एतबारे वफ़ा अरे तौबा
दुश्मनी दोस्ती-सी लगती है
मेरी दीवानगी कोई देखे
धुप भी चांदनी-सी लगती है
सोंचता हूँ की मैं किधर जाऊँ
हर तरफ रौशनी-सी लगती है
आज की जिन्दगी अरे तौबा
मीर की सायरी सी लगती है
शाम-ऐ-हस्ती की लौ बहुत कम है
ये सहर आखरी-सी लगती है
जाने क्या बात हो गयी यारों
हर नजर अजनबी-सी लगती है
दोस्ती अजनबी-सी लगती है......
भेजने वाले : ज़ब्बार अहमद
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