![maa.jpg](http://shayari.files.wordpress.com/2006/09/maa.jpg)
नये ज़माने के रंग में,
पुरानी सी लगती है जो|
आगे बढने वालों के बीच,
पिछङी सी लगती है जो|
गिर जाने पर मेरे,
दर्द से सिहर जाती है जो|
चश्मे के पीछे ,आँखें गढाए,
हर चेहरे में मुझे निहारती है जो|
खिङकी के पीछे ,टकटकी लगाए,
मेरा इन्तजार करती है जो|
सुई में धागा डालने के लिये,
हर बार मेरी मनुहार करती है जो|
तवे से उतरे हुए ,गरम फुल्कों में,
जाने कितना स्वाद भर देती है जो|
मुझे परदेस भेज ,अब याद करके,
कभी-कभी पलकें भिगा लेती है जो|
मेरी खुशियों का लवण,मेरे जीवन का सार,
मेरी मुस्कुराहटों की मिठास,मेरी आशाओं का आधार,
मेरी माँ, हाँ मेरी माँ ही तो है वो|
भेजने वाले : जुबेर अहमद
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj9JBsEj6YRxx6eK7YEU6ZfhHJvulFGTvaQdCUBcQD-YeOtF0-X3PG5qPmNXiUBq9KlWZMVO2pp6Rv2XrEAPKcNIQMHlN8TQeVC3Vj8tj3K0dO0jbd-FZImlE7lOpmfxdNoA6e8OSDX2dA/s1600/rssya5.gif)
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